भारतीय रेल का वित्तीय ढाँचा
(Financial Framework of Indian Railways)
भारतीय रेल केवल एक परिवहन तंत्र (Transport System) नहीं है, बल्कि यह भारत की सामाजिक-आर्थिक संरचना का आधार स्तंभ है। इसकी भूमिका केवल
यात्रियों और माल की आवाजाही तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक व्यवस्था, राष्ट्रीय एकता, औद्योगिक विकास और राजस्व सृजन में भी महत्वपूर्ण
स्थान रखती है। रेल मंत्रालय और रेलवे बोर्ड के अंतर्गत विकसित वित्तीय संरचना (Financial
Structure) अपनी प्रकृति में अद्वितीय
है क्योंकि इसमें एक ओर सरकारी तंत्र (Government System) की जवाबदेही और नियंत्रण निहित है, तो दूसरी ओर व्यावसायिक उपक्रम (Commercial
Undertaking) की तरह राजस्व सृजन,
लाभ-हानि की गणना और दक्षता की
अपेक्षा भी की जाती है।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
2. सरकारी और वाणिज्यिक स्वरूप (Governmental
and Commercial Nature)
भारतीय रेल के वित्तीय ढाँचे की
एक विशिष्ट विशेषता इसका द्वैध स्वरूप (Dual Character) है—यह न तो पूरी तरह सरकारी विभाग है और न
ही पूरी तरह निजी उपक्रम।
(क) सरकारी स्वरूप (Governmental
Nature)
भारतीय रेल संसद (Parliament)
के प्रति उत्तरदायी है। इसके बजट,
व्यय और वित्तीय अनुशासन की समीक्षा
संसद की समितियों द्वारा की जाती है। रेलवे के वित्तीय अभिलेख अनुदान (Grants)
और विनियोजन लेखा (Appropriation
Accounts) के रूप में संसद के
समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller
& Auditor General – C&AG) द्वारा
इसकी लेखा परीक्षा की जाती है।
(ख) वाणिज्यिक स्वरूप
(Commercial Nature)
साथ ही, भारतीय रेल एक सेवा प्रदाता (Service
Provider) के रूप में कार्य करती है।
यात्रियों और माल ढुलाई से आय (Revenue Generation) अर्जित करती है तथा व्यावसायिक सिद्धांतों (Commercial
Principles) का पालन करती है। इसे एक "व्यावसायिक
विभागीय उपक्रम (Commercial Departmental Undertaking)" भी कहा जाता है, क्योंकि यह न तो स्वतंत्र कंपनी है और न ही केवल
सरकारी विभाग।
इस द्वैध प्रकृति के कारण
भारतीय रेल के वित्तीय प्रबंधन में एक ओर सरकारी नियमों और पारदर्शिता का पालन
करना आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर
बाज़ार की प्रतिस्पर्धा, लागत-लाभ
विश्लेषण और दक्षता भी अनिवार्य हो जाती है।
3. संसद का नियंत्रण और उत्तरदायित्व (Parliamentary
Control & Accountability)
भारतीय रेल के वित्तीय प्रबंधन
में संसदीय नियंत्रण सर्वोपरि है। संसद द्वारा अनुमोदन और परीक्षण के तीन प्रमुख
स्तर हैं:
- अनुदान की मांगें (Demands for Grants):
प्रत्येक वित्तीय वर्ष में रेल
मंत्रालय अपनी योजनाओं और व्यय की स्वीकृति हेतु संसद के समक्ष अनुदान की
मांग प्रस्तुत करता है।
- विनियोजन लेखा (Appropriation
Accounts): इसमें स्वीकृत
व्यय और वास्तविक व्यय की तुलना प्रस्तुत की जाती है। यदि अधिक व्यय हुआ हो
तो उसकी अनुमति अनुदान-पश्चात स्वीकृति (Supplementary
Grants) से प्राप्त की जाती
है।
- लोक लेखा समिति (Public Accounts
Committee ): यह संसदीय
समिति रेलवे के व्यय की विधिकता, पारदर्शिता और औचित्य का परीक्षण करती है।
यह बहु-स्तरीय प्रणाली
सुनिश्चित करती है कि रेलवे का वित्तीय ढाँचा केवल आंतरिक नियंत्रण पर निर्भर न
रहे बल्कि संसद और जनता के प्रति भी जवाबदेह बना रहे।
4. वित्तीय उत्तरदायित्व और शुचिता (Financial
Responsibility & Propriety)
भारतीय रेल के वित्तीय नियमों
का आधार Canons of Financial Propriety पर टिका है। रेलवे बोर्ड और वित्त आयुक्त (Financial
Commissioner) समय-समय पर इन
सिद्धांतों को लागू करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हैं।
इन सिद्धांतों के अनुसार:
·
कोई भी व्यय तभी किया जा सकता है जब वह आवश्यक और
न्यायसंगत (Justified) हो।
·
व्यय का उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए होना चाहिए
जिसके लिए अनुदान स्वीकृत हुआ है।
·
सार्वजनिक धन (Public Money) का उपयोग व्यक्तिगत लाभ, विलासिता या अनावश्यक उद्देश्यों के लिए नहीं किया
जा सकता।
·
संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग दक्षता और पारदर्शिता
के साथ होना चाहिए।
रेलवे के प्रत्येक स्तर—रेल
मंत्रालय, ज़ोनल रेलवे,
मंडल (Division) और इकाई स्तर पर—वित्तीय अनुशासन बनाए रखने
हेतु वित्तीय सलाहकार एवं मुख्य लेखा अधिकारी (FA&CAO) और अन्य वित्तीय नियंत्रक नियुक्त किए जाते हैं।
5. आय के स्रोत (Sources of
Revenue)
भारतीय रेल के राजस्व का ढाँचा
बहुआयामी है। इसके प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:
1.
माल भाड़ा (Freight Earnings):
भारतीय रेल की कुल आय का लगभग 65–70% हिस्सा माल भाड़े से आता है। इसमें कोयला,
लौह अयस्क, सीमेंट, खाद्यान्न, उर्वरक और
कंटेनर यातायात प्रमुख योगदान देते हैं। उदाहरणतः 2022-23 में रेलवे ने लगभग 1,600 मिलियन टन माल का परिवहन किया।
2.
यात्री भाड़ा (Passenger Earnings):
यह रेलवे का दूसरा सबसे बड़ा राजस्व स्रोत है। इसमें
उपनगरीय (Suburban) और
गैर-उपनगरीय (Non-Suburban) यात्री
शामिल होते हैं। यद्यपि यात्री किराये अपेक्षाकृत कम रखे जाते हैं, परन्तु यह सामाजिक दायित्व (Social
Obligation) के अंतर्गत आता है।
3.
अन्य कोचिंग आय (Other Coaching Earnings):
पार्सल सेवा, लगेज शुल्क, पर्यटन ट्रेनें और विशेष चार्टर सेवाओं से प्राप्त आय।
4.
गैर-भाड़ा राजस्व (Non-Fare Revenue):
स्टेशन विज्ञापन, भूमि और रियल एस्टेट विकास, ई-कॉमर्स सेवाएँ, मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क और स्टेशन पुनर्विकास
योजनाएँ। भारतीय रेल ने 2020 के
बाद इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया है।
5.
बजटीय सहायता (Gross Budgetary Support – GBS):
केंद्र सरकार रेलवे के पूँजीगत व्यय हेतु प्रतिवर्ष
बड़ी राशि उपलब्ध कराती है।
6.
अतिरिक्त-बजटीय संसाधन (Extra-Budgetary Resources – EBR):
इसमें बाजार ऋण, बॉन्ड, भारतीय रेलवे वित्त निगम (IRFC) द्वारा जुटाए गए संसाधन, PPP मॉडल और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से ऋण शामिल हैं।
6. व्यय का स्वरूप (Nature of
Expenditure)
भारतीय रेल का व्यय व्यापक और विविधता
पूर्ण है। इसे दो मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:
1.
राजस्व व्यय (Revenue Expenditure):
2.
पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure):
इसमें नए प्रोजेक्ट्स, ट्रैक विस्तार, विद्युतीकरण, स्टेशन पुनर्विकास, हाई-स्पीड रेल परियोजनाएँ, समर्पित माल गलियारे (Dedicated Freight
Corridors) और सुरक्षा संबंधी निवेश
शामिल हैं।
इसके अतिरिक्त, रेलवे को पेंशन देनदारियों और ऋण सेवा (Debt
Servicing) पर भी भारी व्यय करना
पड़ता है। 2022-23 में अकेले
पेंशन पर लगभग 55,000 करोड़
रुपये खर्च किए गए।
7. वित्तीय नियंत्रण की संस्थागत
व्यवस्था (Institutional Financial Control)
भारतीय रेल का वित्तीय ढाँचा
विभिन्न संस्थानों और अधिकारियों द्वारा नियंत्रित एवं संचालित होता है:
- रेल मंत्रालय: नीति निर्माण और रणनीतिक निर्णय।
- रेलवे बोर्ड: बजट, निवेश, नीतिगत
दिशा-निर्देश और संसाधन प्रबंधन।
- वित्त आयुक्त: रेलवे का सर्वोच्च वित्तीय सलाहकार, जो सीधे वित्त मंत्रालय के साथ समन्वय
करता है।
- जनरल मैनेजर (GM): प्रत्येक ज़ोनल रेलवे में वित्तीय अनुशासन की
जिम्मेदारी।
- वित्त सलाहकार एवं मुख्य लेखा अधिकारी (FA&CAO):
ज़ोनल और मंडल स्तर पर लेखा और
वित्तीय परामर्श।
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (C&AG):
बाहरी लेखा परीक्षा और
रिपोर्टिंग।
8. आधुनिक सुधार और डिजिटल पहल (Modern
Reforms & Digital Initiatives)
भारतीय रेल ने वित्तीय प्रबंधन
को पारदर्शी और दक्ष बनाने हेतु कई आधुनिक तकनीकी प्रणालियाँ अपनाई हैं:
- IPAS (Integrated
Payroll & Accounting System): कर्मचारियों के वेतन, लेखा और वित्तीय डेटा का एकीकृत डिजिटल प्रबंधन।
- IREPS (Indian
Railways E-Procurement System): निविदा (Tender) और
अनुबंध की ऑनलाइन प्रणाली, जिससे भ्रष्टाचार में कमी और दक्षता में वृद्धि हुई।
- E-Drishti Dashboard:
वास्तविक समय (Real-time)
में राजस्व, व्यय और प्रदर्शन की निगरानी हेतु
विकसित डैशबोर्ड।
- Outcome Budgeting और Zero Based Budgeting: परिणाम-आधारित और आवश्यकता-आधारित बजट
पद्धतियाँ।
- Digital Payment
Systems: टिकटिंग और
मालभाड़ा भुगतान में डिजिटल माध्यमों को बढ़ावा।
इन सुधारों से रेलवे का वित्तीय
प्रबंधन अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी
और आधुनिक हुआ है।
9. वित्तीय चुनौतियाँ और अवसर (Financial
Challenges & Opportunities)
भारतीय रेलवे के वित्तीय
प्रबंधन को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यात्री किरायों में
सामाजिक सब्सिडी के कारण राजस्व में लगातार घाटा होता है, जिससे परिचालन लागत और व्यय को संतुलित करना कठिन हो
जाता है। इसके अतिरिक्त, पेंशन
और वेतन भार लगातार बढ़ रहा है, जो वित्तीय दबाव को और बढ़ाता है। सड़क और हवाई परिवहन से प्रतिस्पर्धा के
कारण रेलवे को अपनी सेवाओं को आकर्षक और लागत-कुशल बनाए रखने की आवश्यकता है। साथ
ही, हाई-स्पीड रेल परियोजनाएँ
और माल गलियारे जैसी आधुनिक परियोजनाओं के लिए विशाल पूँजी निवेश की आवश्यकता होती
है, जो बजट और वित्तीय योजना
में अतिरिक्त चुनौती पेश करती है।
वित्तीय चुनौतियों के बावजूद,
रेलवे के सामने कई अवसर भी हैं,
जिनका सही उपयोग वित्तीय मजबूती और
परिचालन दक्षता बढ़ा सकता है। Dedicated Freight Corridors के निर्माण से माल यातायात में तेजी आएगी और इससे आय
में वृद्धि होगी। PM Gati Shakti योजना के तहत मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी से परिचालन दक्षता और एकीकरण में सुधार होगा।
निजी साझेदारी (PPP) मॉडल और
विदेशी निवेश वित्तीय संसाधनों का विस्तार करने में मदद करेंगे। इसके अलावा,
ग्रीन एनर्जी, सौर और पवन ऊर्जा आधारित परियोजनाओं के माध्यम से परिचालन
लागत घट सकती है। डिजिटल नवाचार और "मेक इन इंडिया" नीति के अंतर्गत
आत्मनिर्भरता बढ़ने के साथ-साथ राजस्व में भी सुधार संभव है।
इस प्रकार, रेलवे को वित्तीय चुनौतियों का सामना करते
हुए उपलब्ध अवसरों का सही उपयोग करना होगा, ताकि यह दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता, परिचालन दक्षता और सतत विकास सुनिश्चित कर
सके।
10. निष्कर्ष
(Conclusion)
भारतीय रेल का वित्तीय ढाँचा
अत्यंत जटिल (Complex) होते
हुए भी सुव्यवस्थित (Well-Organized) है। इसमें सरकारी नियंत्रण, संसदीय उत्तरदायित्व, व्यावसायिक
सिद्धांत और आधुनिक सुधार—सभी एक साथ कार्यरत हैं।
इतिहास से लेकर वर्तमान तक,
रेलवे ने अपने वित्तीय ढाँचे को
समय-समय पर बदलते परिवेश के अनुरूप ढाला है। भविष्य की चुनौतियाँ—जैसे पेंशन का
भार, निवेश की आवश्यकता और
प्रतिस्पर्धा—काफी बड़ी हैं, परंतु
अवसर भी उतने ही व्यापक हैं। यदि भारतीय रेल पारदर्शिता, संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग, आधुनिक तकनीक और विविध निवेश स्रोतों पर
ध्यान केंद्रित करे, तो यह न
केवल आत्मनिर्भर (Self-reliant) बनेगी बल्कि भारत की आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) और सामाजिक एकता (Social Cohesion) का भी प्रमुख इंजन साबित होगी।